Friday, November 26, 2010

"सत्यम शिवम सुंदरम"

कहीं क्षण भर,
रुका जीवन,
कंप कंप कांपा पादाक्रान्त मन
व्याप्त हुआ अंधकार जन जन,
त्यागा जब
"सत्यम शिवम सुंदरम"।।

चंद सांसें

चंद सांसें लम्बी बातें,
राह तकती ,सूनी आंखें।
एक सपना साथ रहना
याद करना ,जब भी थकना।

यह कहानी है पुरानी,
करती निंदिया आनाकानी।
ख़ौफ़-ए-रुस्वाई शब-ए-तन्हाई
है मगर झूठी लडाई,।

जब भी मिलना ऐसे मिलना,
खूब हंसना ,और खिलना।

Thursday, November 25, 2010

तुम(१)


तुम ने,
जाने क्यूं हर बार चाहा,अपने रिशते को नाम देना,
और
मैने जिसे हर बार भूलना चाहा,तुमने दोहराया॰॰॰
क्यूं बांधते हो, रहने दो
मुक्त॰॰॰अपनी लय में युक्त
मेरे स्वप्न!!

तुम

क्या तुम वही हो,
हज़ारों ख़्वाब जिसके मैंने कुछ पल मे ही बुन डाले,
वो जिसकी सांसों की सरगम सुनहरी रेशमी चादर की तरह,
मुझको हर रात ढक देती,
और तनहाई में भी रोने नहीं देती
हां ,
तुम वही हो जो मुझ में जीता है,
लहर की तरह जो मेरी हर सांस में उठता है फिर बिखर जाता है।
हां तुम वही तो हो!
दो -
सुर दो, बोल दो,
शब्द दो, हस्त दो॰॰॰
रंग दो, कागज़ दो,
संग दो,साथी दो॰॰॰
जो दो पूर्ण दो, अधूरा न दो।
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