अंतस की विस्तृत
उर्जाओं को
एकत्रित करना न सही ....
ब्रह्माण्ड के
संगठित कणों का
विघटन ही क्यूँ नहीं....
कुछ तो कर ही रहा है मनुष्य
उसे ढूँढने की चेष्टा में .......
उर्जाओं को
एकत्रित करना न सही ....
ब्रह्माण्ड के
संगठित कणों का
विघटन ही क्यूँ नहीं....
कुछ तो कर ही रहा है मनुष्य
उसे ढूँढने की चेष्टा में .......
8 comments:
कुछ तो कर ही रहा है मनुष्य
उसे ढूँढने की चेष्टा में .......
RECENT POST...: दोहे,,,,
सतत प्रयत्न ...कुछ तो मिलेगा भी !
बहुत ही गहरे भावो को रचना में सजाया है आपने.....
उद्यम करता आदमी, हरदम लागे नीक |
पूजा ही यह कर्म है, बाकी लगे अलीक |
बाकी लगे अलीक, बसे वह कण कण में हैं |
मंदिर मस्जिद ढूंढ़, स्वयं के अर्पण में हैं |
लैबोटरी में आज, लगाया जो सबने दम |
हुआ सार्थक देख, कई वर्षों का उद्यम ||
वाह क्या बात है.बहुत सुन्दर रचना.
आपके जज्बात बहुत अच्छे लगे.
मोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
बहुत गहरे भाव..गहरी सोच..बहुत सुन्दर..
cheshta hi to hame urjavan banati hai
आप सभी का आभार
Post a Comment