Saturday, July 7, 2012

चेष्टा

अंतस की विस्तृत
उर्जाओं को
एकत्रित करना न सही ....
ब्रह्माण्ड के
संगठित कणों का
विघटन ही क्यूँ नहीं....
कुछ तो कर ही रहा है मनुष्य
उसे ढूँढने की चेष्टा में .......

8 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

कुछ तो कर ही रहा है मनुष्य
उसे ढूँढने की चेष्टा में .......

RECENT POST...: दोहे,,,,

Satish Saxena said...

सतत प्रयत्न ...कुछ तो मिलेगा भी !

विभूति" said...

बहुत ही गहरे भावो को रचना में सजाया है आपने.....

रविकर said...

उद्यम करता आदमी, हरदम लागे नीक |
पूजा ही यह कर्म है, बाकी लगे अलीक |
बाकी लगे अलीक, बसे वह कण कण में हैं |
मंदिर मस्जिद ढूंढ़, स्वयं के अर्पण में हैं |
लैबोटरी में आज, लगाया जो सबने दम |
हुआ सार्थक देख, कई वर्षों का उद्यम ||

Unknown said...

वाह क्या बात है.बहुत सुन्दर रचना.
आपके जज्बात बहुत अच्छे लगे.



मोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स

Maheshwari kaneri said...

बहुत गहरे भाव..गहरी सोच..बहुत सुन्दर..

Dr. sandhya tiwari said...

cheshta hi to hame urjavan banati hai

nutan vyas said...

आप सभी का आभार

www.hamarivani.com