Tuesday, May 22, 2012

गाए मन

मौन मुखर कर
गाए मन

प्रणय राग पर
बंधन बांधे
सृजन सुरीले
दर्शन मांगे
स्वर अंजन धर
जाए मन
मौन मुखर कर
गाए मन

तपती धरती
प्यासी मरती
बिलख बिलख
मेघा को तरसी
स्नेह सरित
बरसाए मन
मौन मुखर कर
गाये मन

ज्ञान ध्यान सम
अलख जगाए
सरल स्वप्न
नूतन बन जाए
नव आशा भर
जाये मन
मौन मुखर कर
गाए मन

Saturday, May 12, 2012

जीना है

जीना है
इन्द्रधनुष के पार
व्यापक
दिखता जो
दिव्य जीवन
वैसे ही
और
धरा के साथ बंधकर
ओस की बूँद
जैसे भी
परन्तु कहाँ सुनिश्चित  रहा
अब तक
नियति का सरस खेला
कौन बीज
कैसे बोया जाएगा
बढ़ रहेगा ओट किसकी
और कैसे कब मिलेगा
धूप छाँव का संरक्षण
या असमय
हो जाए भक्षण
कौन जाने ....
मार्ग तो है ही कठिन पर
जी रहा फिर भी कण कण
हो रहा प्रस्फुटित हर क्षण
पथिक बन जीने को आतुर
नवांकुर ....
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