मेरे मन मंदिर में प्रियवर
आशाओं की लहर जगी है
हिय मेरा था सरल बना यह
पथिक जीवन के पथ पर
छोड़ चूका था आशा क्या
दर्शन देंगे देव विमल
बनकर नीर सरिता बहता
भाव सागर में मिल जाने को
झेला जिसने व्योम से लेकर
पृथ्वी की दुर्गम तृष्णा को
ये मन हो रहा सूखा तरुवर
प्रभु आस हर पहर जगी है
माया मोह ने घेरा डाला
सत्य असत्य में उलझा थोडा
भागा लेकर हिय को मेरे
स्मृति नाम का चंचल घोडा
लौट न पाया बरसों बीते
टूटा सब्र का भी अभिमान
ले मन वीणा भटका वन वन
नित्य नूतन सुर तान
विलम्ब न कर, अब करुणा कर
तृष्णा कैसी ये अधर जगी है ....
12 comments:
माया मोह ने घेरा डाला
सत्य असत्य में उलझा थोडा
भागा लेकर हिय को मेरे
स्मृति नाम का चंचल घोडा
लौट न पाया बरसों बीते
टूटा सब्र का भी अभिमान
ले मन वीणा भटका वन वन
नित्य नूतन सुर तान
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ हैं।
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‘जो मेरा मन कहे’ पर आपका स्वागत है
भावों की सुंदर अभिव्यक्ति .....
हिय मेरा था सरल बना यह
पथिक जीवन के पथ पर
छोड़ चूका था आशा क्या
दर्शन देंगे देव विमल
बनकर नीर सरिता बहता
भाव सागर में मिल जाने को
झेला जिसने व्योम से लेकर
पृथ्वी की दुर्गम तृष्णा कोbehtareen abhivyakti
sundar evam saral panktiyon se sajii rachna
सुन्दर/मोहक अभिव्यक्ति...
सादर बधाई...
prabhaavshali rachna....
कल 07/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
सुंदर...
www.poeticprakash.com
भावों की सुंदर अभिव्यक्ति..
खूबसूरत प्रस्तुति
bahut bahut dhanywaad!!
मेरे मन मंदिर में प्रियवर
आशाओं की लहर जगी है
बहुत सुंदर रचना ...
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