कठिन हुआ है कितना देखो यूँही सरल हो जाना
चलते चलते कितना बढ़ना और क्या है पाना
क्या उचित क्या अनुचित
इस मोह पाश क्यूँ बंधना
क्या मौला क्या पंडित
सब को एक नाम है जपना
फिर क्यूँ बोलो यूँ लड मर कर आप ही खो जाना
चलते चलते कितना बढ़ना और क्या है पाना
हाँ मैं रहती हो कर पुलकित
देख कर रोज़ नया एक सपना
रहूँ क्यूँ हो कर आतंकित
जब न ईश सिवा कुछ अपना
हिम शिखर भी चढ़कर तुने क्या खुद को पहचाना
चलते चलते कितना बढ़ना और क्या है पाना
9 comments:
कठिन हुआ है कितना देखो यूँही सरल हो जाना ....
Badi sahi baat kahi aapne...sundar
www.poeticprakash.com
कठिन हुआ है कितना देखो यूँही सरल हो जाना ....
Badi sahi baat kahi aapne...sundar
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बेहतरीन।
सादर
आपकी पोस्ट के शीर्षक ने ही सारा हाले दिल ब्यान कर दिया "कठिन हुआ है कितना देखो यूँ हीं सरल हो जाना " बहुत खूब..समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
रहूँ क्यूँ हो कर आतंकित
जब न ईश सिवा कुछ अपना
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई
सुन्दर प्रस्तुति... सार्थक प्रश्न...
सादर बधाई...
हिम शिखर भी चढ़कर तुने क्या खुद को पहचाना
चलते चलते कितना बढ़ना और क्या है पाना
Wah .... Bahut hi Sunder....
सुन्दर प्रस्तुति.....बधाई...
कठिन हुआ है कितना देखो यूँही सरल हो जाना ....वाह बहुत सुन्दर
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