Sunday, December 15, 2013

तुम्हारी भूल

भूल तो तुम्हारी है 
क्यूँ दे दी तुमने 
अग्नि परीक्षा 
क्यूँ हाथ जोड़े
अश्रु बहाए...
क्यूँ नहीं भस्म कर डाला
तुम पर लांछन लगाते 
असुरों को ...
हाथों हाथ 

तुम्हारे सतयुग से तो कलयुग
यह मेरा भला है !!
जहाँ मुझको यह तो पता है
'राम' से हटकर भी
मेरा अस्तित्व है
नहीं लादती मैं ख़ुद पर
'राम' की मर्यादा का बोझ
नहीं आँक सकता
हर कोई मुझे
हर बार
बेबात

पर फिर भी
तुम्हारी उस एक भूल
की सज़ा
भुगत रहीं हैं आज
हज़ारों 'निर्भया'.....
कौन कब कैसे प्रताड़ित हो
किसे पता
वैसे भी
हर कोई मेरे 'राम' जैसा
'राम' भी तो नहीं होता ......!!

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